Advertisement

पिता की ऐसी प्रोपर्टी पर बेटे का कोई अधिकार नहीं, सुप्रीम कोर्ट ने कर दिया साफ Supreme Court Decision

Supreme Court Decision: आम धारणा के विपरीत, सुप्रीम कोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसले में स्पष्ट किया है कि पिता की हर प्रकार की संपत्ति पर बेटे का अधिकार नहीं होता है। कई लोग मानते हैं कि पिता की संपत्ति पर बेटे का स्वाभाविक अधिकार होता है, लेकिन सर्वोच्च न्यायालय ने इस धारणा को खारिज किया है। अदालत ने अपने फैसले में कहा है कि पिता की स्वअर्जित संपत्ति पर बेटे का कोई कानूनी अधिकार नहीं होता है और वह इस संपत्ति पर किसी भी प्रकार का दावा करने के लिए अधिकृत नहीं है। यह फैसला भारतीय परिवारों में संपत्ति विवादों के संदर्भ में बेहद महत्वपूर्ण माना जा रहा है।

स्वअर्जित संपत्ति पर पिता का पूर्ण अधिकार

सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में स्पष्ट किया है कि पिता अपनी स्वअर्जित संपत्ति के बारे में स्वतंत्र निर्णय ले सकते हैं। स्वअर्जित संपत्ति वह संपत्ति होती है जिसे व्यक्ति ने अपनी मेहनत और आय से खरीदा या प्राप्त किया है। इस प्रकार की संपत्ति पर पिता को पूरा अधिकार होता है और वह अपनी इच्छानुसार इसे किसी को भी दे सकते हैं या इसका उपयोग कर सकते हैं। सुप्रीम कोर्ट का यह निर्णय मिताक्षरा कानून के अनुरूप है, जिसमें भी यही प्रावधान है कि स्वअर्जित संपत्ति पर मालिक का पूर्ण अधिकार होता है।

Also Read:
8th Pay Commission जारी हुआ नया DA Chart, May 2025 8th Pay Commission

हाईकोर्ट के फैसले की पुष्टि

हाल ही में एक मामले में हाईकोर्ट ने भी यही फैसला दिया था कि बेटा पिता की स्वअर्जित संपत्ति में कोई अधिकार नहीं रखता है। हाईकोर्ट ने कहा था कि बेटा, चाहे वह विवाहित हो या अविवाहित, पिता के स्वअर्जित मकान में रहने का दावा नहीं कर सकता है। सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट के इस फैसले पर अपनी सहमति जताई है और कहा है कि पिता अपनी स्वअर्जित संपत्ति के बारे में स्वतंत्र निर्णय ले सकते हैं। यह फैसला भारतीय न्यायिक प्रणाली में संपत्ति अधिकारों के संबंध में एक महत्वपूर्ण मील का पत्थर माना जा रहा है।

मिताक्षरा कानून का महत्व

Also Read:
PM Kisan update 20वीं किस्त की राशि और रिलीज़ डेट की पूरी जानकारी PM Kisan update

भारत में हिंदू उत्तराधिकार कानून के अंतर्गत मिताक्षरा विधि एक महत्वपूर्ण स्थान रखती है। मिताक्षरा कानून के अनुसार, पिता को अपनी स्वअर्जित संपत्ति के बारे में पूरी स्वतंत्रता होती है। वह अपनी स्वअर्जित संपत्ति का उपयोग अपनी इच्छानुसार कर सकते हैं और इसे किसी को भी दे सकते हैं। इस संपत्ति पर बेटा या बेटी कोई अधिकार नहीं जता सकते हैं। सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में मिताक्षरा कानून के इसी प्रावधान को आधार बनाया है और कहा है कि स्वअर्जित संपत्ति पर पिता की मर्जी ही सर्वोपरि होती है।

बेटा-बेटी का समान अधिकार और अपवाद

हालांकि भारतीय कानून में पिता की संपत्ति पर बेटा और बेटी का समान अधिकार माना गया है, लेकिन यह नियम स्वअर्जित संपत्ति पर लागू नहीं होता है। सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया है कि स्वअर्जित संपत्ति के मामले में पिता की इच्छा ही सर्वोपरि होती है। बेटे या बेटी को इस संपत्ति पर कोई स्वाभाविक अधिकार प्राप्त नहीं होता है। यह अपवाद महत्वपूर्ण है और संपत्ति विवादों के समय इसे ध्यान में रखना आवश्यक है। हालांकि पैतृक संपत्ति के मामले में स्थिति अलग होती है, जिसमें बेटे को जन्म के साथ ही अधिकार प्राप्त हो जाता है।

Also Read:
Indian Currency 500 रुपये के नोट को लेकर बड़ी खबर, सरकार ने जारी किया हाई अलर्ट Indian Currency

पैतृक संपत्ति और स्वअर्जित संपत्ति में अंतर

कानून के अनुसार, संपत्ति मुख्य रूप से दो प्रकार की होती है – स्वअर्जित संपत्ति और पैतृक संपत्ति। इन दोनों प्रकार की संपत्तियों में अंतर समझना बेहद महत्वपूर्ण है। स्वअर्जित संपत्ति वह होती है जिसे किसी व्यक्ति ने अपनी मेहनत और कमाई से अर्जित किया है। इस प्रकार की संपत्ति पर केवल उसी व्यक्ति का अधिकार होता है जिसने इसे अर्जित किया है। वहीं, पैतृक संपत्ति वह होती है जो परिवार की संयुक्त संपत्ति होती है और पीढ़ियों से चली आ रही होती है। आमतौर पर चार पीढ़ियों से चली आ रही संपत्ति को पैतृक संपत्ति कहा जाता है।

पैतृक संपत्ति पर बेटे का अधिकार

Also Read:
Delhi High Court पति से अलग होने पर पत्नी ससुराल में रह सकती है या नहीं, जानिए हाईकोर्ट का निर्णय Delhi High Court

जहां स्वअर्जित संपत्ति पर बेटे का कोई अधिकार नहीं होता, वहीं पैतृक संपत्ति में बेटे का जन्म से ही अधिकार स्थापित हो जाता है। पैतृक संपत्ति पर बेटे का पिता के बराबर अधिकार होता है और इस संपत्ति के संबंध में किसी भी प्रकार के निर्णय हमवारिसों की सहमति से लिए जाते हैं। यह एक महत्वपूर्ण अंतर है जिसे संपत्ति विवादों के समय ध्यान में रखना चाहिए। पैतृक संपत्ति परिवार की संयुक्त संपत्ति होती है और इसके हकदार हमवारिस कहलाते हैं। इस प्रकार की संपत्ति का बंटवारा होने के बाद ही यह स्वअर्जित संपत्ति में परिवर्तित होती है।

हमवारिस कौन होते हैं?

हमवारिस वे व्यक्ति होते हैं जो पैतृक संपत्ति के कानूनी उत्तराधिकारी होते हैं। हिंदू उत्तराधिकार कानून के अनुसार, पैतृक संपत्ति में पिता, पुत्र, पुत्री, पत्नी और माता सभी हमवारिस माने जाते हैं। हमवारिसों की सहमति के बिना पैतृक संपत्ति का कोई भी निर्णय नहीं लिया जा सकता है। यह एक महत्वपूर्ण प्रावधान है जो पैतृक संपत्ति के संबंध में परिवार के सभी सदस्यों के हितों की रक्षा करता है। इसके विपरीत, स्वअर्जित संपत्ति के मामले में निर्णय व्यक्तिगत होता है और केवल मालिक की इच्छा पर निर्भर करता है।

Also Read:
DA Update 4% बढ़ा DA! सरकार ने कर्मचारियों और पेंशनर्स को दी Good News DA Update

स्वअर्जित संपत्ति पर बेटे का दावा

सुप्रीम कोर्ट के फैसले के अनुसार, बेटा पिता की स्वअर्जित संपत्ति पर किसी भी प्रकार का दावा नहीं कर सकता है। पिता की पूरी स्वतंत्रता होती है कि वह अपनी स्वअर्जित संपत्ति को किसे दें और किसे नहीं। बेटे को इस संपत्ति में हक पाने के लिए कोई कानूनी अधिकार नहीं है। यह फैसला स्पष्ट करता है कि स्वअर्जित संपत्ति के मामले में मालिक की इच्छा ही सर्वोपरि होती है और उसके द्वारा लिए गए निर्णय को कानूनी मान्यता प्राप्त होती है। यह फैसला संपत्ति विवादों के समय महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।

संपत्ति विवादों में कानूनी स्थिति

Also Read:
PM Kaushal Vikas Yojana Registration पीएम कौशल विकास योजना रजिस्ट्रेशन PM Kaushal Vikas Yojana Registration

भारत में संपत्ति विवाद आम हैं और कई परिवारों में इन विवादों के कारण रिश्ते खराब हो जाते हैं। सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला संपत्ति विवादों के समय एक महत्वपूर्ण मार्गदर्शक की भूमिका निभाता है। अगर किसी परिवार में स्वअर्जित संपत्ति को लेकर विवाद है, तो पिता या मालिक की इच्छा ही सर्वोपरि मानी जाएगी। वहीं, पैतृक संपत्ति के मामले में सभी हमवारिसों की सहमति आवश्यक होगी। इस प्रकार, कानून संपत्ति के दोनों प्रकारों के लिए अलग-अलग प्रावधान करता है और न्यायालय इन्हीं प्रावधानों के आधार पर फैसले सुनाते हैं।

सुप्रीम कोर्ट के इस महत्वपूर्ण फैसले से स्पष्ट होता है कि भारतीय कानून में संपत्ति के अधिकारों को लेकर विशेष प्रावधान हैं। पिता की स्वअर्जित संपत्ति पर बेटे का कोई स्वाभाविक अधिकार नहीं होता है, जबकि पैतृक संपत्ति में बेटे का जन्म से ही अधिकार स्थापित हो जाता है। यह अंतर समझना बेहद महत्वपूर्ण है क्योंकि यह परिवार में संपत्ति विवादों के समय महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। परिवार के सदस्यों को इन कानूनी प्रावधानों के बारे में जागरूक होना चाहिए ताकि अनावश्यक विवादों से बचा जा सके और परिवार में शांति और सद्भाव बना रहे।

Disclaimer

Also Read:
DA Hike 2025 महंगाई भत्ते में इज़ाफा—कर्मचारियों और पेंशनभोगियों के लिए राहत DA Hike 2025

इस लेख में दी गई जानकारी केवल सामान्य जागरूकता के लिए है और यह कानूनी सलाह नहीं है। संपत्ति के अधिकारों से संबंधित किसी भी विवाद या प्रश्न के लिए कृपया योग्य कानूनी विशेषज्ञ से संपर्क करें। कानून और न्यायिक व्याख्याएं समय के साथ बदल सकती हैं, इसलिए अद्यतन जानकारी के लिए हमेशा प्रामाणिक स्रोतों से सलाह लें। हर मामला अपनी विशिष्ट परिस्थितियों के आधार पर अलग हो सकता है और न्यायालय उसी के अनुसार निर्णय ले सकते हैं।

5 seconds remaining

Leave a Comment