RBI Rule for Loan: भारतीय रिज़र्व बैंक (आरबीआई) ने पिछले सप्ताह जानबूझकर कर्ज न चुकाने वाले लोगों पर कार्रवाई करने के लिए नए नियमों का प्रस्ताव पेश किया है। इन नियमों का मुख्य उद्देश्य उन लोगों पर अंकुश लगाना है जिनके पास कर्ज चुकाने की क्षमता होने के बावजूद वे ऐसा नहीं करते। ये नियम ऐसे विलफुल डिफॉल्टर्स के खिलाफ सख्त कार्रवाई का मार्ग प्रशस्त करेंगे, जिससे बैंकों और वित्तीय संस्थानों के हितों की रक्षा होगी।
विलफुल डिफॉल्टर्स का बढ़ता खतरा
हाल के वर्षों में विलफुल डिफॉल्ट के मामलों में चिंताजनक वृद्धि देखी गई है। दिसंबर 2024 के अंत तक, इस प्रकार के कर्ज की राशि लगभग 3.4 लाख करोड़ रुपये तक पहुंच गई थी। ये डिफॉल्टर वित्तीय प्रणाली के लिए एक गंभीर खतरा बन गए हैं, क्योंकि वे पैसा उधार लेकर उसे चुकाने से जानबूझकर बचते हैं। बैंक जनता के पैसों के संरक्षक होते हैं, और जब लोन के रूप में दिया गया पैसा वापस नहीं आता, तो इसका नुकसान आम जमाकर्ताओं को उठाना पड़ता है।
आरबीआई के नए प्रस्तावित नियमों का उद्देश्य
आरबीआई के नए प्रस्तावित नियमों का मुख्य उद्देश्य विलफुल डिफॉल्टर्स की पहचान करना और उनके खिलाफ कार्रवाई करने की एक व्यवस्थित प्रक्रिया स्थापित करना है। इन नियमों के अंतर्गत, 25 लाख रुपये से अधिक का कर्ज लेने वाले ऐसे व्यक्तियों या संस्थाओं पर विशेष निगरानी रखी जाएगी। ये नियम विभिन्न वित्तीय संस्थानों के फीडबैक और न्यायालयों के सुझावों के आधार पर तैयार किए गए हैं, जो बैंकिंग प्रणाली की सुरक्षा को मजबूत करने का प्रयास करते हैं।
विलफुल डिफॉल्टर्स और सामान्य डिफॉल्टर्स में अंतर
महत्वपूर्ण बात यह है कि विलफुल डिफॉल्टर्स उन संकटग्रस्त कर्जदारों या दिवालिया व्यवसायों से अलग हैं जो वास्तव में भुगतान करने में असमर्थ हैं। विलफुल डिफॉल्टर वे हैं जो भुगतान करने की क्षमता रखते हुए भी जानबूझकर ऐसा नहीं करते। ये लोग अक्सर कानूनी खामियों का फायदा उठाते हैं और अपनी आर्थिक शक्ति का उपयोग करके बैंकिंग प्रणाली को नुकसान पहुंचाते हैं। ऐसे लोगों के लिए कर्ज न चुकाना एक रणनीति बन गई है, जिससे वित्तीय व्यवस्था पर दबाव बढ़ता है।
आरबीआई के प्रस्तावित उपायों में शामिल हैं
आरबीआई के प्रस्ताव के अनुसार, विलफुल डिफॉल्टर्स को नया कर्ज प्राप्त करने से पहले अपने पुराने एनपीए (नॉन-परफॉर्मिंग एसेट) खातों का निपटारा करना होगा। इसके अलावा, आरबीआई ने यह भी सुझाव दिया है कि किसी खाते के एनपीए होने के 6 महीने के भीतर उस पर विलफुल डिफॉल्टर का टैग लगा दिया जाना चाहिए। यह त्वरित पहचान और कार्रवाई सुनिश्चित करेगा, जिससे वित्तीय संस्थाओं को अपने हितों की रक्षा करने में मदद मिलेगी।
विलफुल डिफॉल्टर घोषित होने के परिणाम
एक बार जब किसी व्यक्ति या संस्था को विलफुल डिफॉल्टर घोषित कर दिया जाता है, तो उन्हें कई प्रकार की कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है। सबसे पहले, उन्हें किसी भी बैंक या वित्तीय संस्थान से अतिरिक्त ऋण प्राप्त करने की अनुमति नहीं होगी। इसके अतिरिक्त, वे अपने मौजूदा ऋणों की पुनर्गठन (रिस्ट्रक्चरिंग) की सुविधा का लाभ नहीं उठा पाएंगे। आरबीआई के प्रस्ताव के अनुसार, गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों (एनबीएफसी) को भी इन्हीं नियमों के अनुसार कार्य करना होगा और उन्हें भी विलफुल डिफॉल्टर टैग लगाने की प्रक्रिया का पालन करना होगा।
एनबीएफसी के लिए भी होंगे समान नियम
आरबीआई के नए प्रस्तावित नियम न केवल बैंकों बल्कि गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों (एनबीएफसी) पर भी लागू होंगे। इसका अर्थ है कि सभी प्रकार के वित्तीय संस्थान विलफुल डिफॉल्टर्स की पहचान और उनके खिलाफ कार्रवाई के लिए एक समान नीति का पालन करेंगे। यह कदम पूरे वित्तीय क्षेत्र में अनुशासन स्थापित करने और दोषियों को बचने के रास्ते बंद करने में मदद करेगा।
वित्तीय प्रणाली में अनुशासन लाने का प्रयास
आरबीआई का यह कदम वित्तीय प्रणाली में अनुशासन लाने का एक महत्वपूर्ण प्रयास है। इन नियमों का उद्देश्य इस बात को सुनिश्चित करना है कि जो लोग कर्ज चुका सकते हैं, उन्हें ऐसा करना ही चाहिए। यह वित्तीय संस्थानों को अपने संसाधनों का बेहतर प्रबंधन करने और जिम्मेदार उधारकर्ताओं को अधिक सहायता प्रदान करने में सक्षम बनाएगा। इससे न केवल बैंकों की वित्तीय स्थिति मजबूत होगी, बल्कि समग्र अर्थव्यवस्था के लिए भी लाभदायक होगा।
विशेषज्ञों की राय
वित्तीय विशेषज्ञों का मानना है कि आरबीआई के ये नए प्रस्तावित नियम वित्तीय क्षेत्र में एक स्वागत योग्य कदम हैं। वे इस बात पर जोर देते हैं कि विलफुल डिफॉल्टर्स पर अंकुश लगाना न केवल बैंकों के लिए बल्कि पूरी अर्थव्यवस्था के लिए आवश्यक है। इससे बैंकों और वित्तीय संस्थानों का एनपीए स्तर कम होगा और वे अपने संसाधनों का बेहतर उपयोग कर पाएंगे। इससे ईमानदार उधारकर्ताओं को भी लाभ होगा, क्योंकि बैंक उन्हें बेहतर ब्याज दरों और सेवाओं की पेशकश कर सकेंगे।
आरबीआई के नए प्रस्तावित नियम भारतीय बैंकिंग प्रणाली में एक महत्वपूर्ण सुधार का प्रतिनिधित्व करते हैं। ये नियम विलफुल डिफॉल्टर्स पर अंकुश लगाकर वित्तीय अनुशासन को बढ़ावा देंगे। यह न केवल बैंकों और वित्तीय संस्थानों के हितों की रक्षा करेगा, बल्कि समग्र अर्थव्यवस्था की स्थिरता और विकास में भी योगदान देगा। आशा की जाती है कि इन नियमों के लागू होने के बाद वित्तीय क्षेत्र में अनुशासन और पारदर्शिता बढ़ेगी, जिससे सभी हितधारकों को लाभ होगा।
Disclaimer
यह लेख केवल सूचनात्मक उद्देश्यों के लिए है। यदि आप कर्ज या अन्य वित्तीय मामलों से संबंधित कोई निर्णय लेने जा रहे हैं, तो कृपया पहले किसी योग्य वित्तीय सलाहकार से परामर्श करें। लेख में दी गई जानकारी अप्रैल 2025 के अनुसार है और समय के साथ नियमों में बदलाव हो सकता है।