EMI bounce: बैंक से लोन लेने के बाद भुगतान न कर पाने वालों को बॉम्बे हाईकोर्ट ने बड़ी राहत दी है। इस महत्वपूर्ण फैसले के अनुसार, सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों को लोन डिफॉल्ट के मामले में लुकआउट सर्कुलर (एलओसी) जारी करने का अधिकार नहीं है। यह फैसला ऐसे समय आया है जब कई लोग आर्थिक कठिनाइयों के कारण अपने लोन का भुगतान नहीं कर पा रहे हैं और बैंकों की कार्रवाई से परेशान हैं। बॉम्बे हाईकोर्ट के इस निर्णय से लोन न चुका पाने वाले लोगों को कानूनी संरक्षण मिला है और उनके मौलिक अधिकारों की रक्षा सुनिश्चित हुई है।
बॉम्बे हाईकोर्ट का निर्णय
बॉम्बे हाईकोर्ट की डिविजनल बेंच ने अपने महत्वपूर्ण फैसले में स्पष्ट किया है कि सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों को लोन न चुकाने वालों के खिलाफ लुकआउट सर्कुलर जारी करने का कानूनी अधिकार नहीं है। अदालत ने केंद्र सरकार के उस कार्यालय ज्ञापन की धारा को भी अवैध घोषित किया है, जिसमें सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों के अध्यक्षों को लोन डिफॉल्ट के मामलों में एलओसी जारी करने का अधिकार दिया गया था। हाईकोर्ट के इस फैसले से लोन न चुका पाने वाले लोगों के विदेश यात्रा करने के अधिकार की रक्षा होगी, जिसे अब तक बैंक लुकआउट सर्कुलर जारी करके प्रतिबंधित कर सकते थे।
मौलिक अधिकारों का संरक्षण
अदालत ने अपने फैसले में विशेष रूप से उल्लेख किया है कि लोन डिफॉल्ट के मामले में बैंक द्वारा लुकआउट सर्कुलर जारी करना, खासकर जब इससे किसी व्यक्ति को विदेश यात्रा करने से रोका जाता है, तो यह उनके मौलिक अधिकारों का उल्लंघन है। नागरिकों के यात्रा संबंधी अधिकार संविधान द्वारा संरक्षित हैं, और केवल कानून की उचित प्रक्रिया के माध्यम से ही इन्हें सीमित किया जा सकता है। हाईकोर्ट के अनुसार, सिर्फ लोन न चुका पाना ऐसा कारण नहीं है जिसके आधार पर किसी के आवागमन के अधिकारों को प्रतिबंधित किया जा सके।
केंद्र सरकार के ज्ञापन पर टिप्पणी
बॉम्बे हाईकोर्ट ने केंद्र सरकार के 2018 में जारी कार्यालय ज्ञापन के संशोधन की भी आलोचना की है। इस संशोधन के माध्यम से सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों को भारत के आर्थिक हित में एलओसी जारी करने का अधिकार दिया गया था। अदालत ने माना कि यह प्रावधान कानूनी रूप से अमान्य है क्योंकि इसके अंतर्गत बैंकों को ऐसे अधिकार दिए गए थे, जो केवल कानून प्रवर्तन एजेंसियों के पास होने चाहिए। बैंकों को ऐसे अधिकार देना न्यायिक प्रक्रिया के सिद्धांतों के विपरीत है और इससे व्यक्तिगत स्वतंत्रता का उल्लंघन हो सकता है।
केंद्र सरकार की दलील
इस मामले में केंद्र सरकार के वकील ने अदालत में तर्क दिया था कि सरकार के कार्यालय ज्ञापन के अनुसार, अगर किसी व्यक्ति का विदेश जाना देश के लिए आर्थिक रूप से हानिकारक प्रतीत होता है, तो उसके खिलाफ लुकआउट सर्कुलर जारी किया जा सकता है। सरकार का मानना था कि बड़े लोन डिफॉल्टरों के विदेश भागने की संभावना को रोकने के लिए यह प्रावधान आवश्यक है। हालांकि, बॉम्बे हाईकोर्ट ने इस दलील को खारिज कर दिया और स्पष्ट किया कि ऐसे प्रतिबंध केवल उचित कानूनी प्रक्रिया के बाद ही लगाए जा सकते हैं।
बैंकों के लिए क्या मायने रखता है यह फैसला
इस फैसले का बैंकों के लिए महत्वपूर्ण प्रभाव पड़ेगा। अब बैंक लोन डिफॉल्ट के सामान्य मामलों में लुकआउट सर्कुलर जारी नहीं कर सकेंगे और उन्हें वसूली के लिए अन्य कानूनी विकल्पों पर विचार करना होगा। बैंकों के पास अभी भी सरफेसी एक्ट (SARFAESI Act) और ऋण वसूली न्यायाधिकरण (DRT) जैसे कानूनी उपाय मौजूद हैं। हाईकोर्ट के फैसले का अर्थ यह नहीं है कि लोन डिफॉल्टरों की जिम्मेदारी समाप्त हो गई है, बल्कि यह सुनिश्चित करता है कि उनके अधिकारों का हनन न हो और केवल उचित कानूनी प्रक्रिया का ही पालन किया जाए।
लोन धारकों के लिए राहत
इस फैसले से लोन लेने वाले लोगों को बड़ी राहत मिली है, विशेष रूप से उन लोगों को जो विभिन्न कारणों से अपने लोन का भुगतान नहीं कर पा रहे हैं। अब उन्हें यह भय नहीं रहेगा कि सिर्फ लोन डिफॉल्ट के कारण उन पर लुकआउट सर्कुलर जारी हो जाएगा और उन्हें विदेश यात्रा करने से रोका जाएगा। यह फैसला यह भी स्पष्ट करता है कि लोन न चुकाना अपराध नहीं है, बल्कि एक नागरिक देनदारी है, जिसके लिए उपयुक्त कानूनी प्रक्रिया का पालन करना आवश्यक है।
लोन डिफॉल्ट से जुड़े अन्य कानूनी प्रावधान
हालांकि, यह फैसला लोन न चुकाने वालों को पूरी छूट नहीं देता है। बैंक अभी भी अन्य कानूनी प्रावधानों का उपयोग कर सकते हैं, जैसे उधारकर्ता की संपत्ति की कुर्की, आरबीआई के दिशानिर्देशों के अनुसार विलफुल डिफॉल्टर घोषित करना, और सिविल मुकदमे दायर करना। इसके अलावा, धोखाधड़ी या जानबूझकर लोन न चुकाने के मामलों में आपराधिक कार्रवाई की जा सकती है। बॉम्बे हाईकोर्ट का फैसला केवल लुकआउट सर्कुलर के प्रावधान को अवैध घोषित करता है, न कि लोन वसूली के अन्य कानूनी उपायों को।
बॉम्बे हाईकोर्ट का यह फैसला भारतीय बैंकिंग प्रणाली में एक महत्वपूर्ण मोड़ है, जो नागरिकों के अधिकारों और कानूनी प्रक्रिया के महत्व को रेखांकित करता है। यह फैसला यह सुनिश्चित करता है कि आर्थिक देनदारियों के कारण किसी के मौलिक अधिकारों का उल्लंघन न हो। हालांकि, इससे लोन धारकों की लोन चुकाने की जिम्मेदारी कम नहीं होती है। लोन का भुगतान समय पर करना अभी भी प्रत्येक उधारकर्ता का कर्तव्य है। यह फैसला केवल यह सुनिश्चित करता है कि वसूली की प्रक्रिया में नागरिक अधिकारों का सम्मान किया जाए और केवल उचित कानूनी प्रक्रिया का ही पालन हो।
Disclaimer
इस लेख में दी गई जानकारी केवल सूचनात्मक उद्देश्यों के लिए है और इसे कानूनी सलाह के रूप में नहीं माना जाना चाहिए। किसी भी लोन या बैंकिंग संबंधी मामले में व्यक्तिगत परिस्थितियों के अनुसार योग्य कानूनी सलाहकार से परामर्श करना उचित होगा। फैसले की व्याख्या और उसके प्रभाव समय के साथ बदल सकते हैं, और अन्य न्यायालयों के निर्णय भी इसे प्रभावित कर सकते हैं। हमें उम्मीद है कि यह जानकारी आपके लिए उपयोगी होगी, लेकिन किसी भी कार्रवाई से पहले विशेषज्ञ की सलाह अवश्य लें।