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भाई की सारी प्रोपर्टी पर बहन कब कर सकती है अपना दावा, जानिये कानून Daughter’s property rights

Daughter’s property rights: संपत्ति के मामले में परिवार के बीच विवाद आम बात है। पिता-पुत्र या भाई-भाई के बीच ही नहीं, बल्कि भाई-बहन के बीच भी संपत्ति के विवाद होते रहते हैं। वर्तमान कानून में बहनों को भी संपत्ति में अधिकार दिए गए हैं। पुराने समय में बेटियों को संपत्ति से वंचित रखा जाता था, लेकिन अब समय बदल चुका है। आज हम जानेंगे कि कब और किस परिस्थिति में बहन अपने भाई की संपत्ति पर अधिकार जता सकती है।

बेटी के संपत्ति अधिकार का विकास

पहले के समय में बेटियों को पिता की संपत्ति में अधिकार नहीं मिलता था। समाज में यह माना जाता था कि केवल बेटे ही पैतृक संपत्ति के अधिकारी हैं। बेटियों को शादी के समय कुछ दहेज देकर संतुष्ट कर लिया जाता था। परंतु समय के साथ-साथ कानून में महत्वपूर्ण बदलाव आए और बेटियों को भी बेटों के समान अधिकार प्रदान किए गए। यह परिवर्तन भारतीय समाज में महिलाओं की स्थिति को मजबूत करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम था।

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हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम और बेटियों के अधिकार

2005 में हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम में संशोधन किया गया जिसके तहत बेटियों को पैतृक संपत्ति में बेटों के बराबर अधिकार दिए गए। इस कानून के अनुसार, पिता की मृत्यु के बाद उनकी संपत्ति में बेटे और बेटी दोनों का समान हिस्सा होता है। यहां तक कि विवाहित बेटियों को भी इस अधिकार से वंचित नहीं किया जा सकता। यह संशोधन भारतीय समाज में एक क्रांतिकारी परिवर्तन लाया और महिलाओं को आर्थिक स्वतंत्रता प्रदान करने की दिशा में महत्वपूर्ण कदम साबित हुआ।

स्वअर्जित और पैतृक संपत्ति में अंतर

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संपत्ति के मामले में स्वअर्जित और पैतृक संपत्ति के बीच अंतर समझना महत्वपूर्ण है। स्वअर्जित संपत्ति वह है जिसे माता-पिता ने अपने जीवनकाल में स्वयं अर्जित किया है। इस प्रकार की संपत्ति के बारे में माता-पिता अपनी इच्छानुसार निर्णय ले सकते हैं। अगर वे अपनी स्वअर्जित संपत्ति सिर्फ बेटी के नाम करना चाहते हैं, तो वे ऐसा कर सकते हैं और इस स्थिति में बेटे का उस संपत्ति पर कोई अधिकार नहीं होगा।

पैतृक संपत्ति में बेटे-बेटी के समान अधिकार

पैतृक संपत्ति वह होती है जो पीढ़ियों से चली आ रही है। इस प्रकार की संपत्ति में माता-पिता मनमाने ढंग से फैसला नहीं ले सकते। पैतृक संपत्ति में बेटे और बेटी दोनों का समान अधिकार होता है। कोई भी माता-पिता अपनी पैतृक संपत्ति से बेटी को वंचित नहीं कर सकते। यह कानूनी प्रावधान स्पष्ट रूप से बताता है कि पैतृक संपत्ति में बेटे-बेटी में कोई भेदभाव नहीं होना चाहिए।

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भाई की संपत्ति पर बहन का अधिकार

सामान्य परिस्थितियों में बहन को भाई की संपत्ति पर कोई सीधा अधिकार नहीं होता है। परंतु हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम में 2005 के संशोधन के बाद कुछ विशेष परिस्थितियों में बहन भाई की संपत्ति पर अधिकार जता सकती है। यदि भाई की मृत्यु बिना कोई वसीयत लिखे हो जाती है और उसके प्रथम श्रेणी के उत्तराधिकारी जैसे पत्नी या बच्चे न हों, तो ऐसी स्थिति में बहन उसकी संपत्ति की उत्तराधिकारी हो सकती है।

दूसरी श्रेणी के उत्तराधिकारी

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कानून के अनुसार, किसी व्यक्ति के भाई और बहन दूसरी श्रेणी के उत्तराधिकारी माने जाते हैं। इसका अर्थ है कि जब प्रथम श्रेणी के उत्तराधिकारी मौजूद न हों, तभी दूसरी श्रेणी के उत्तराधिकारियों का दावा मान्य होता है। इस प्रकार, यदि किसी व्यक्ति की मृत्यु होती है और उसके पास कोई पत्नी, बच्चे या माता-पिता नहीं हैं, तब उसके भाई-बहन उसकी संपत्ति के उत्तराधिकारी बन सकते हैं।

भाई की मृत्यु के बाद संपत्ति विवाद

यदि भाई की मृत्यु के बाद उसकी संपत्ति पर अधिकार को लेकर विवाद होता है, तो मृतक के अन्य भाई भी उसकी संपत्ति पर दावा कर सकते हैं। ऐसी स्थिति में, न्यायालय सभी पक्षों के दावों को सुनकर और सबूतों का मूल्यांकन करके निष्पक्ष निर्णय लेता है। न्यायालय का फैसला सभी पक्षों के लिए बाध्यकारी होता है और उसका पालन करना अनिवार्य होता है।

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विवादों से बचने के लिए सुझाव

संपत्ति विवादों से बचने के लिए यह महत्वपूर्ण है कि व्यक्ति अपने जीवनकाल में ही अपनी संपत्ति के बारे में स्पष्ट निर्देश दे दें। वसीयत लिखकर या कानूनी दस्तावेजों के माध्यम से अपनी इच्छा स्पष्ट करने से परिवार में भविष्य में होने वाले विवादों से बचा जा सकता है। इसके अतिरिक्त, संपत्ति के मामलों में कानूनी सलाह लेना भी बुद्धिमानी है ताकि सभी कानूनी औपचारिकताएँ पूरी की जा सकें।

संपत्ति के मामले हमेशा से नाजुक रहे हैं और इनसे पारिवारिक रिश्ते भी प्रभावित होते हैं। कानून ने समय के साथ बदलाव किए हैं और अब महिलाओं को भी संपत्ति में समान अधिकार प्रदान किए हैं। संपत्ति के विवादों से बचने के लिए सबसे अच्छा तरीका है – अपने जीवनकाल में ही स्पष्ट निर्देश देना और पारिवारिक संबंधों को संपत्ति से ऊपर रखना। हमें यह समझना होगा कि रिश्ते संपत्ति से कहीं अधिक महत्वपूर्ण हैं।

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Disclaimer

यह लेख केवल सामान्य जानकारी के लिए है और इसे कानूनी सलाह नहीं माना जाना चाहिए। प्रत्येक मामले की अपनी विशिष्ट परिस्थितियां होती हैं, इसलिए किसी भी संपत्ति विवाद में निर्णय लेने से पहले योग्य कानूनी सलाहकार से परामर्श करना उचित रहेगा। कानून समय-समय पर बदलते रहते हैं, इसलिए नवीनतम कानूनी स्थिति जानने के लिए हमेशा अद्यतित जानकारी प्राप्त करें।

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