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चेक बाउंस मामले में हाईकोर्ट का बड़ा फैसला, अब ये नोटिस होगा मान्य cheque bounce case

cheque bounce case: चेक बाउंस होना आम बात है। कई कारणों से चेक बाउंस हो जाते हैं, जैसे खाते में पर्याप्त राशि न होना, हस्ताक्षर में अंतर होना या कोई तकनीकी समस्या। चेक बाउंस होने पर चेक जारी करने वाले को नोटिस भेजना कानूनी प्रक्रिया का हिस्सा है। इस नोटिस को भेजने के तरीके पर अब तक अस्पष्टता थी। हाल ही में इलाहाबाद हाईकोर्ट ने इस विषय पर एक महत्वपूर्ण फैसला सुनाया है, जिसने न केवल इस अस्पष्टता को दूर किया है बल्कि डिजिटल माध्यम से भेजे गए नोटिस को भी वैधता प्रदान की है।

क्या था विवाद

चेक बाउंस होने पर नोटिस भेजना कानूनी आवश्यकता है। परंपरागत रूप से, ये नोटिस पंजीकृत डाक के माध्यम से भेजे जाते थे। लेकिन आधुनिक समय में, जब डिजिटल संचार के माध्यम जैसे ईमेल और व्हाट्सएप अधिक प्रचलित हो गए हैं, तब यह सवाल उठा कि क्या इन माध्यमों से भेजे गए नोटिस कानूनी रूप से मान्य होंगे। राजेंद्र यादव बनाम उत्तर प्रदेश सरकार के मामले में इलाहाबाद हाईकोर्ट ने इस विवाद का समाधान किया है।

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हाईकोर्ट का फैसला

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने अपने फैसले में स्पष्ट किया है कि चेक बाउंस के मामलों में ईमेल और व्हाट्सएप जैसे डिजिटल माध्यमों से भेजे गए नोटिस भी कानूनी रूप से मान्य होंगे। कोर्ट ने नेगोशिएबल इंस्ट्रूमेंट्स एक्ट की धारा 138 का हवाला देते हुए कहा कि इस धारा में केवल यह उल्लेख है कि नोटिस लिखित होना चाहिए, लेकिन यह नहीं बताया गया है कि नोटिस किस माध्यम से भेजा जाना चाहिए। इसलिए, अगर नोटिस ईमेल या व्हाट्सएप जैसे डिजिटल माध्यम से भेजा जाता है, तो वह भी वैध माना जाएगा।

कानूनी आधार

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हाईकोर्ट ने अपने फैसले को सुदृढ़ करने के लिए आईटी एक्ट और इंडियन एविडेंस एक्ट का भी हवाला दिया। आईटी एक्ट की धारा 4 और 13 के अनुसार, इलेक्ट्रॉनिक माध्यम से भेजी गई जानकारी को कानूनी रूप से मान्य माना जा सकता है, बशर्ते इसका प्रमाण उपलब्ध हो। इसके अलावा, इंडियन एविडेंस एक्ट की धारा 65 बी के अनुसार, इलेक्ट्रॉनिक रिकॉर्ड को साक्ष्य के रूप में स्वीकार किया जा सकता है। इन कानूनी प्रावधानों के आधार पर, हाईकोर्ट ने ईमेल और व्हाट्सएप से भेजे गए चेक बाउंस नोटिस को वैध और मान्य करार दिया है।

न्यायाधीशों के लिए निर्देश

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने उत्तर प्रदेश के न्यायाधीशों के लिए भी निर्देश जारी किए हैं। कोर्ट ने कहा है कि नेगोशिएबल इंस्ट्रूमेंट्स एक्ट के तहत दर्ज की गई शिकायतों की सुनवाई करते समय, संबंधित मजिस्ट्रेट या कोर्ट को यह सुनिश्चित करना होगा कि पंजीकृत डाक के माध्यम से भेजी गई शिकायत का पूरा विवरण उपलब्ध है। यह निर्देश न्यायिक प्रक्रिया में पारदर्शिता और विश्वसनीयता सुनिश्चित करने के लिए महत्वपूर्ण है।

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डिजिटल नोटिस के लिए शर्तें

हालांकि हाईकोर्ट ने डिजिटल माध्यम से भेजे गए नोटिस को मान्यता दी है, लेकिन इसके लिए कुछ शर्तें भी रखी हैं। सबसे महत्वपूर्ण शर्त यह है कि नोटिस भेजने वाले को इसका प्रमाण रखना होगा। उदाहरण के लिए, ईमेल भेजने का स्क्रीनशॉट, डिलीवरी रिपोर्ट, या व्हाट्सएप मैसेज का स्क्रीनशॉट जिससे यह साबित हो सके कि नोटिस वास्तव में भेजा गया था और प्राप्तकर्ता तक पहुंचा था। आईटी एक्ट की धारा 13 में दिए गए प्रावधानों के अनुसार, इलेक्ट्रॉनिक संचार तभी वैध माना जाएगा जब उसका उचित प्रमाण उपलब्ध हो।

फैसले का व्यापक प्रभाव

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इस फैसले का व्यापक प्रभाव पड़ेगा, विशेष रूप से डिजिटल युग में जहां अधिकांश संचार इलेक्ट्रॉनिक माध्यमों से होता है। यह फैसला बैंकों, बैंक उपभोक्ताओं और चेक लेने-देने वालों के लिए बेहद महत्वपूर्ण है। अब वे चेक बाउंस के मामले में नोटिस भेजने के लिए ईमेल और व्हाट्सएप जैसे तेज़ और सुविधाजनक माध्यमों का उपयोग कर सकते हैं, जो न केवल समय बचाएगा बल्कि प्रक्रिया को भी सुव्यवस्थित करेगा।

उपभोक्ताओं के लिए सावधानियां

इस फैसले के बाद, उपभोक्ताओं को अपने ईमेल और व्हाट्सएप की नियमित जांच करनी चाहिए, क्योंकि अब चेक बाउंस का नोटिस इन माध्यमों से भी भेजा जा सकता है। अगर आप इन माध्यमों से भेजे गए नोटिस की अनदेखी करते हैं, तो आप कानूनी कार्रवाई का सामना कर सकते हैं। इसलिए, अपने डिजिटल संचार चैनलों की नियमित रूप से जांच करना और किसी भी नोटिस पर तुरंत प्रतिक्रिया देना महत्वपूर्ण है।

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इलाहाबाद हाईकोर्ट का यह फैसला दर्शाता है कि कानूनी व्यवस्था भी डिजिटल युग के अनुरूप अपने आप को अपडेट कर रही है। यह फैसला चेक बाउंस जैसे मामलों में कानूनी प्रक्रिया को सरल और तेज़ बनाने में मदद करेगा। हालांकि, यह भी सुनिश्चित करना महत्वपूर्ण है कि डिजिटल माध्यमों से भेजे गए नोटिस का उचित प्रमाण रखा जाए ताकि भविष्य में किसी भी कानूनी विवाद से बचा जा सके।

Disclaimer

यह लेख केवल सूचनात्मक उद्देश्यों के लिए है और इसे कानूनी सलाह के रूप में नहीं लिया जाना चाहिए। किसी भी विशिष्ट मामले या समस्या के लिए, कृपया योग्य कानूनी सलाहकार से परामर्श करें। लेखक और प्रकाशक इस लेख में दी गई जानकारी के उपयोग से होने वाले किसी भी नुकसान के लिए जिम्मेदार नहीं हैं।

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