Supreme Court: आमतौर पर संपत्ति से जुड़े नियमों और कानूनों के बारे में लोगों को पूरी जानकारी नहीं होती है। इसी कड़ी में, सुप्रीम कोर्ट का एक हालिया निर्णय बहुत महत्वपूर्ण है, जिसमें स्पष्ट किया गया है कि माता-पिता अपनी संपत्ति, जो उन्होंने अपने बच्चों को उपहार (गिफ्ट) के रूप में दी है, उसे वापस ले सकते हैं यदि बच्चे उनकी उचित देखभाल नहीं करते। यह फैसला बुजुर्गों के अधिकारों की रक्षा के लिए 2007 में बनाए गए विशेष कानून की व्याख्या करते हुए दिया गया है।
सुप्रीम कोर्ट की बेंच, जिसमें जस्टिस सी.टी. रविकुमार और जस्टिस संजय करोल शामिल थे, ने स्पष्ट रूप से कहा है कि न्यायालयों को मेंटनेंस एंड वेलफेयर ऑफ पैरेंट्स एंड सीनियर सिटीजन्स एक्ट, 2007 के मामलों में बुजुर्गों के हितों की रक्षा के लिए विशेष सतर्कता बरतनी चाहिए। यह कानून बुजुर्गों को उनके बच्चों द्वारा की जाने वाली उपेक्षा से बचाने के लिए बनाया गया था।
मध्य प्रदेश के छतरपुर से जुड़ा मामला
इस महत्वपूर्ण फैसले का संबंध मध्य प्रदेश के छतरपुर से जुड़े एक मामले से है। इस मामले में, एक मां उर्मिला दीक्षित ने अपने बेटे सुनील शरण दीक्षित को दी गई संपत्ति वापस मांगी थी। उर्मिला दीक्षित ने 1968 में एक संपत्ति खरीदी थी और 7 सितंबर 2019 को उन्होंने एक गिफ्ट डीड के माध्यम से वह संपत्ति अपने बेटे को दे दी थी।
हालांकि, बाद में 4 दिसंबर 2020 को उन्होंने छतरपुर के सब डिविजनल मजिस्ट्रेट (एसडीएम) को एक आवेदन दिया जिसमें उन्होंने बताया कि उनके बेटे ने और अधिक संपत्ति पाने के लालच में उन पर और उनके पति पर हमला किया। उर्मिला दीक्षित ने यह भी बताया कि उनके बेटे ने संपत्ति हस्तांतरण से पहले एक वचन पत्र दिया था जिसमें उन्होंने अपने माता-पिता की देखभाल करने का वादा किया था। इस आवेदन के आधार पर एसडीएम ने गिफ्ट डीड को निरस्त करने का आदेश दिया।
कानून की धारा 23 क्या कहती है?
2007 में बनाए गए मेंटनेंस एंड वेलफेयर ऑफ पैरेंट्स एंड सीनियर सिटीजन्स एक्ट की धारा 23 का महत्व इस मामले में बहुत अधिक है। यह धारा स्पष्ट रूप से कहती है कि यदि कोई वरिष्ठ नागरिक इस कानून के लागू होने के बाद अपनी संपत्ति किसी को उपहार (गिफ्ट) या अन्य किसी तरीके से इस शर्त पर देता है कि संपत्ति पाने वाला उस वरिष्ठ नागरिक की देखभाल करेगा, और यदि ऐसा नहीं होता है, तो यह माना जाएगा कि संपत्ति का हस्तांतरण धोखाधड़ी या दबाव के तहत हुआ था। ऐसी स्थिति में ट्रिब्यूनल इस हस्तांतरण को रद्द घोषित कर सकता है।
सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा है कि यह कानून वरिष्ठ नागरिकों को उपेक्षा से बचाने और उन्हें अपने अधिकारों की रक्षा में सक्षम बनाने के लिए लागू किया गया था। इसका मतलब यह है कि जब भी कोई बुजुर्ग अपनी उचित देखभाल न होने की शिकायत करता है, तो ट्रिब्यूनल को मामले की जांच करने और आवश्यक कदम उठाने का अधिकार है।
मध्य प्रदेश हाई कोर्ट का फैसला और सुप्रीम कोर्ट का हस्तक्षेप
इस मामले में, जब एसडीएम ने गिफ्ट डीड निरस्त करने का आदेश दिया, तो सुनील शरण दीक्षित ने विभिन्न मंचों पर इसके खिलाफ अपील की। उसने दावा किया कि उसकी मां की तरफ से पेश किया गया वचन पत्र फर्जी था। शुरुआती चरणों में हर फोरम पर एसडीएम का आदेश बरकरार रहा, लेकिन अंततः 31 अक्टूबर 2022 को मध्य प्रदेश हाई कोर्ट की डिवीजन बेंच ने उसके पक्ष में फैसला सुनाया।
हाई कोर्ट की डिवीजन बेंच ने अपने फैसले में कहा कि अगर माता की सेवा गिफ्ट डीड की शर्त थी, तो यह उस डीड में लिखित रूप में होना चाहिए था। चूंकि गिफ्ट डीड में इस शर्त का कोई उल्लेख नहीं था, इसलिए हाई कोर्ट ने निर्णय दिया कि संपत्ति बेटे के पास ही रहेगी।
हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ने मां के पक्ष में निर्णय लेते हुए हाई कोर्ट की डिवीजन बेंच के फैसले को पलट दिया। 2 जनवरी को सुप्रीम कोर्ट ने बुजुर्गों के हित की रक्षा के लिए 2007 में बनाए गए कानून के महत्व को रेखांकित किया और कहा कि हाई कोर्ट ने एसडीएम के आदेश को पलटकर गलती की थी।
सुप्रीम कोर्ट की व्याख्या
सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में पूर्व के महत्वपूर्ण निर्णयों का हवाला दिया, जैसे ‘एस वनिता बनाम बेंगलुरु डिप्टी कमिश्नर’ और ‘सुदेश छिकारा बनाम रमती देवी’। इन मामलों में, बुजुर्गों की सुरक्षा के लिए मेंटनेंस एंड वेलफेयर ऑफ पैरेंट्स एंड सीनियर सिटीजन्स एक्ट, 2007 की उदारतापूर्वक व्याख्या की गई थी।
सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया कि यह कानून वरिष्ठ नागरिकों को उपेक्षा और दुर्व्यवहार से बचाने के लिए बनाया गया था। अदालत ने यह भी कहा कि जब कोई बुजुर्ग अपनी उचित देखभाल न होने की शिकायत करता है, तो ट्रिब्यूनल के पास यह अधिकार है कि वह मामले की जांच करे और यदि आवश्यक हो तो संपत्ति पाने वाले को उस संपत्ति से हटने का आदेश दे।
बुजुर्गों के हक में अहम फैसला
सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला बुजुर्गों के अधिकारों की रक्षा के लिए एक महत्वपूर्ण कदम है। इससे यह संदेश गया है कि बुजुर्गों के साथ दुर्व्यवहार और उनकी उपेक्षा स्वीकार्य नहीं है। यह फैसला यह भी स्पष्ट करता है कि यदि कोई बच्चा अपने माता-पिता से उपहार (गिफ्ट) के रूप में संपत्ति प्राप्त करता है और फिर उनकी देखभाल नहीं करता, तो माता-पिता कानूनी रूप से उस संपत्ति को वापस ले सकते हैं।
इस प्रकार, सुप्रीम कोर्ट ने एक बार फिर यह संदेश दिया है कि हमारे समाज में बुजुर्गों के हितों की रक्षा आवश्यक है और उनके साथ सम्मानजनक व्यवहार किया जाना चाहिए। इस फैसले से यह भी स्पष्ट होता है कि बुजुर्गों के अधिकारों की रक्षा के लिए बनाए गए कानूनों का उद्देश्य उन्हें सुरक्षा प्रदान करना है और न्यायपालिका इस उद्देश्य को पूरा करने के लिए प्रतिबद्ध है।
Disclaimer
यह लेख केवल सूचनात्मक उद्देश्यों के लिए है और इसे कानूनी सलाह के रूप में नहीं माना जाना चाहिए। प्रत्येक मामला अपनी विशिष्ट परिस्थितियों के अनुसार अलग हो सकता है। संपत्ति से संबंधित किसी भी विवाद या मुद्दे के संबंध में, कृपया योग्य कानूनी पेशेवर से परामर्श करें। लेख में दी गई जानकारी सुप्रीम कोर्ट के हालिया फैसले पर आधारित है और व्यक्तिगत मामलों में इसकी प्रयोज्यता भिन्न हो सकती है।